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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
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COMMENTARY
उदितोऽयं विस्तरशो मिथो विवादमानयोः ।अष्टादशसु मार्गेषु व्यवहारस्य निर्णयः ।।9/250
Commentary by
: स्वामी दर्शनानंद जी
अब भृगुजी कहते हैं कि हे ऋषि लोगों ! अठारह प्रकार के विवादों में पारस्परिक व्यवहार करने वालों के विवाद के दण्ड व निर्णय बयान को वर्णित किया।
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Commentary by
: पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यह परस्पर विवाद =झगड़ा करने वाले वादी-प्रतिवादियों के अठारह प्रकार के मुकद्दमों का निर्णय विस्तारपूर्वक कहा ।
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Commentary by
: पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यह परस्पर में झगड़ने वालों के व्यवहार का निर्णय अठारह विभागों में विस्तार पूर्वक कहा गया।
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Commentary by
: पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यह मुकद्दमे वालों के विवाद को 18 प्रकार से निर्णय करने का विस्तार से विधान कहा।
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