Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस प्रकार सारथी रथ के घोड़ों को अपने अधिकार से इच्छानुसार चलाता है उसी प्रकार संसार के मनुष्यों को चाहिये कि वह परिश्रम और प्रयत्न करके विषयों से इन्द्रियों का संयम करें (रोकें)-अर्थात् आँख को रूप से, कान को सुनने से और नाक को सुगन्ध से और इसी प्रकार और इन्द्रियों को।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. (विद्वान् यन्ता वाजिनाम् इव) जैसे विद्वान् - सारथि घोड़ों को नियम में रखता है वैसे विषयेषु अपहारिषु मन और आत्मा को खोटे कामों में खैंचने वाले विषयों में विचरताम् विचरती हुई इन्द्रियाणां संयमे इन्द्रियों के निग्रह में यत्नम् प्रयत्न आतिष्ठेत् सब प्रकार से करे ।
(स० प्र० तृतीय समु०)
टिप्पणी :
‘‘मनुष्य का यही मुख्य आचार है कि जो इन्द्रियाँ चित्त को हरण करने वाले विषयों में प्रवृत्त कराती हैं उनको रोकने में प्रयत्न करे, जैसे घोड़े को सारथि रोककर शुद्ध मार्ग में चलाता है; इस प्रकार इनको अपने वश में करके अधर्म - मार्ग से हटाकर धर्म मार्ग में सदा चलाया करें ।’’
(स० प्र० दशम समु०)
‘‘जैसे सारथि घोड़े को कुपथ में नहीं जाने देता वैसे विद्वान् ब्रह्मचारी आकर्षण करने वाले विषयों में जाते हुए इन्द्रियों के रोकने में सदा प्रयत्न किया करे ।’’
(सं० वि० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(४) जैसे कुशल सारथि घोड़ों को कुपथ में नहीं जाने देता, वैसे ब्रह्मचारी आकर्षण करने वाले विषयों में जाती हुई इन्द्रियों को रोकने का सदा प्रयत्न किया करे।