Manu Smriti
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अमात्याः प्राड्विवाको वा यत्कुर्युः कार्यं अन्यथा ।तत्स्वयं नृपतिः कुर्यात्तान्सहस्रं च दण्डयेत् ।।9/234

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
परन्तु अमात्य (मन्त्री) व न्यायाधीश जिस विवाद के न्याय प्रतिकूल निर्णय करें उसको राजा स्वयम् देखे और यदि राजा के निरीक्षण में उनका अन्तिम निर्णय नीति विरुद्ध जंचे तो राजा उनमें सहस्त्र पण दण्ड लेवे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मन्त्री अथवा न्यायीधीश जिस मुकद्दमें के निर्णय को गलत या अन्यायपूर्वक कर दें तो उस मुकद्दमे के निर्णय को राजा स्वयं करे और अन्यायपूर्वक निर्णय करने वाले उन अधिकारियों को एक हजार पण दण्ड से दण्डित करे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
मंत्री या प्राड्विषाक यदि किसी मुकद्दमे में अन्याय करें तो उसको राजा स्वयं तै करे और उनको ’सहस्र‘ दण्ड दे।
 
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