Manu Smriti
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तीरितं चानुशिष्टं च यत्र क्व चन यद्भवेत् ।कृतं तद्धर्मतो विद्यान्न तद्भूयो निवर्तयेत् ।।9/233

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस ब्यान पर किसी विवाद में न्यायपूर्वक जो अन्तिम निर्णय न्यायाधीश ने कर दिया है उसको मान्य समझें और फिर उसको दूसरे प्रकार न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जहां किसी मुकद्दमे में ठीक निर्णय दिया जा चुका हो और किसी दण्ड का आदेश भी दिया जा चुका हो धर्मपूर्वक किये उस निर्णय को पूरा हुआ जानना चाहिए उस मुकद्दमे का पुनः निर्णय न करे । (यह लोभ या ममत्व आदि के कारण अथवा अकारण निर्णय न करने का कथन है, कारण विशेष होने पर तो पुनः निर्णय का कथन किया गया है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि किसी मुकद्दमे का कहीं धर्म के अनुकूल अन्तिम निर्णय और दण्ड आदि ठीक ठीक हो गया हो तो उसको फिर से लौटाना नहीं चाहिये किन्तु स्वीकार कर लेना चाहिये।
 
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