Manu Smriti
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कूटशासनकर्तॄंश्च प्रकृतीनां च दूषकान् ।स्त्रीबालब्राह्मणघ्नांश्च हन्याद्द्विट्सेविनस्तथा ।।9/232

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राजाज्ञा उल्लंघन करने वाले, राज कर को हानि व दीप देने वाले, स्त्री व स्वामी व ब्राह्मण को ताड़ना (मारने) करने वाले, शत्रु सेवा करने वाले जो पुरुष हैं, राजा इन सबों को नष्ट भ्रष्ट कर दे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
और राजा के निर्णयों को कपटपूर्वक लिखने वाले, प्रकृति-प्रजा, मन्त्री, सेनापति आदि राजकर्मचारियों को रिश्वत आदि बुरे कार्यों में फंसाकर बिगाड़ने वाले, स्त्रियों, बच्चो और विद्वानों की हत्या करने वाले, तथा शत्रु से मिलकर उसका भला करने वाले, इनको वध से दण्डित करे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो लोग कूटनीति से शासन करें, जो प्रकृतियों को दूषित करें जो स्त्री, बालक या ब्राह्मणों को कष्ट देते हों, जो शत्रु से मिले हों उनको राजा दण्ड दे।
 
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