Manu Smriti
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ये नियुक्तास्तु कार्येषु हन्युः कार्याणि कार्यिणाम् ।धनोष्मणा पच्यमानास्तान्निःस्वान्कारयेन्नृपः ।।9/231

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि कोई पुरुष कार्य के सम्पादन करने को नौकर रख गया हो और वह उस कार्य को जान बूझ कर नष्ट कर दे तो राजा उसका सब धन ले ले।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मुकद्दमों के कार्यों में राजा द्वारा लगाये गये जो कर्मचारी धन की गर्मी अर्थात् रिश्वत आदि से प्रभावित होकर वादी-प्रतिवादियों के मुकद्दमों को बिगाड़े राजा उनकी सारी संपत्ति छीन ले ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो लोग राजा की ओर से (कार्येषु पद ब्ेंमे) मुकद्दमों में नियुक्त है वे धन की गर्मी से अभिमानी होकर यदि मुकद्दमे वालों के मुकद्दमों को बिगाड़ें तो उनका सब कुछ हर लेवे।
 
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