Manu Smriti
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प्रच्छन्नं वा प्रकाशं वा तन्निषेवेत यो नरः ।तस्य दण्डविकल्पः स्याद्यथेष्टं नृपतेस्तथा ।।9/228

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गुप्त वा प्रगट रीति से जुआरी पुरुषों को राजा जिस प्रकार का दण्ड देने की इच्छा करे वही दण्ड देवे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
छुपकर वा सबके सामने जो मनुष्य जूआ खेले उसका दण्ड राजा इच्छानुसार जो भी चाहे वही होता है ।
 
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