Manu Smriti
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द्यूतं एतत्पुरा कल्पे दृष्टं वैरकरं महत् ।तस्माद्द्यूतं न सेवेत हास्यार्थं अपि बुद्धिमान् ।।9/227

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
बड़ी शत्रुता करने वाला जुआरी ही है। यह पूर्व काल में अनुभव किया गया है। इससे बुद्धिमान् पुरुष इसी के मित्र से भी इसका व्यवहार न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यह ’जूआ’ अब से पहले समय में भी महान् कष्ट एवं शत्रुता पैदा करने वाला देखा गया है इसलिये बुद्धिमान् मनुष्य हंसी-मजाक में भी जूआ न खेले ।
 
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