Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यह सब गुप्त चोर हैं, खोटे कार्यों से उत्तम प्रजा को कष्ट व हानि पहुँचाते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ये छुपे हुए तस्कर = चोर राज्य में रहकर गलत और बुरे कामों को कर करके सदा राजा और सज्जन प्रजाओं को दुःख पहुंचाते रहते हैं ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि, ये जुआरी आदि छः प्रकार के गुप्त चोर राजा के राष्ट्र में रहते हुए छल-प्रपञ्चादि खोटे कर्मों से नित्य सज्जन लोगों को सताते रहते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
क्योंकि राजा के राज्य में रहते हुए छिपे चोर हैं। और अच्छी प्रजा को भी अपनी दुष्टता सिखाकर भ्रष्ट करते हैं।