Manu Smriti
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कितवान्कुशीलवान्क्रूरान्पाषण्डस्थांश्च मानवान् ।विकर्मस्थान्शौण्डिकांश्च क्षिप्रं निर्वासयेत्पुरात् ।।9/225

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जुआरी, नर्तक, गायक संसार से शत्रुता करने वाला, पाखण्डी, क्रूर, गहिर्व काम करने वाला, मद्य बनाने वाला, इन सबको राजा शीघ्र ही नगर से बाहर निकाल दे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
और जुआरियों, (कुशीलवान्) नाच-गाने से जीविका करने वाले, क्रूर आचरण वाले, (पाखण्डस्थान्) ढ़ोग आदि रचकर रहने वाले, शास्त्रविरुद्ध बुरे कर्म करने वाले, शराब बनाने बेचने वाले, (मानवान्) इन मनुष्यों को राजा अपने राज्य से जल्दी से जल्दी बाहर निकाल दे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जुआरियों, नट-गायकों, क्रूरों, पाखण्डियों, वेश्यागमनादि विरुद्धाचारियों, और कलालों को राजा एकदम नगर से बाद निकाल दे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जुआरी, धूर्त, क्रूर, पाखण्डी, विकर्मी, शराबी इनको तो देश से शीघ्र ही निकाल देना चाहिये।
 
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