Manu Smriti
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द्यूतं समाह्वयं चैव यः कुर्यात्कारयेत वा ।तान्सर्वान्घातयेद्राजा शूद्रांश्च द्विजलिङ्गिनः ।।9/224

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन दोनों को जो करे और करावे उसकी, और जो शूद्र, ब्राह्मण, क्षत्रियों के चिन्हों को धारण करने वाला है, उसका राजा सत्यानाश कर दे।
टिप्पणी :
224वें श्लोक में शूद्र अर्थात् अनपढ़ जो विद्वानों का वेष धारण करके जन साधारण को छलावा देते हैं वह भी जुआरियों ही के तुल्य मनुजी बतलाते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो मनुष्य ’जूआ’ और समाह्वय स्वयं खेले या दूसरों से खिलायें राजा उन सबको और कपटपूर्वक द्विजों के वेश धारण करने वाले शूद्रों को शारीरिक दण्ड (ताड़ना, अंगच्छेदन ) आदि दे
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो दोनों प्रकार के जूओं में से किसी प्रकार का जूआ खेले या खेलावे, उन सब को राजा हस्तच्छेदनादि कठोर दण्ड दे। और, इसी प्रकार उन नक़ली द्विज-वेषधारियों को, जोकि गुण कर्म से वस्तुतः शूद्र हैं, यथोचित दण्ड दे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
द्यूत और समाह्वय करने या कराने वालों को राजा पिटवा दे और वो शूद्र द्विजों के चिह्न धारण करके लोगों को धोखा दें उसको भी।
 
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