Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पाँसा, कौड़ी आदि जड़ वस्तु से दाँव लगाकर बाजी लगाना द्यूत कहलाता है, और जीवधारी वस्तुओं जैसे घोड़ा, बकरी, भेड़ आदि से दाँव लगाकर बाजी कर समाह्व्य कहलाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
बिना प्राणियों अर्थात् जड़ (ताश, पासा, कौड़ी, गोटी आदि) वस्तुओं के द्वारा बाजी लगाकर जो खेल खेला जाता है लोक में उसे ’द्यूत’ = जूआ कहा जाता है और जो चेतन प्राणियों (मूर्गा, तीतर, बटेर, घोड़ा आदि) के द्वारा बाजी लगाकर खेला जाता है (सः समाह्वय विज्ञेयः) उसे समाह्वय कहा जाता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
पासे आदि जड़ पदार्थों से जो जूआ खेला जाता है, वह लोक में द्यूत कहलाता है। और, जो तीतर-बटेर-मुर्गा आदि प्राणियों से खेला जाता है, उसे समाह्वय समझना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
लोक में (द्यूत) उसको कहते हैं जिसमें जड़ वस्तुओं की बाजी लगा कर खेलते हैं, और जिसमें प्राणियों को दाव पर रक्खा जाता है वह ”समाह्वय‘‘ है।