Manu Smriti
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प्रकाशं एतत्तास्कर्यं यद्देवनसमाह्वयौ ।तयोर्नित्यं प्रतीघाते नृपतिर्यत्नवान्भवेत् ।।9/222

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दोनों प्रकार के द्यूत गुप्त व प्रकट चोरी है और इसके कारण राजा कलंकित होता है और हानि पहुँचती है। राजा का धर्म है कि दोनों प्रकार के जुआरियों का सत्यानाश करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ये जो जूआ और समाह्वय है ये प्रत्यक्ष में होने वाली तस्करी=चोरी है राजा इनको समाप्त करने के लिये सदा प्रयत्नशील रहे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ये दोनों, द्यूत और समाह्वय, खुल्लमखुल्ला चोरी है। अतः, राजा को, उन दोनों के रोकने में सदा यत्नवान् होना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यह जो द्यूत और समाह्वय है यह स्पष्ट रूप से तस्करता (चोरी) है। इनके रोकने के लिये राजा को अवश्य ही बहुत बड़ा प्रबन्ध करना चाहिये।
 
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