Manu Smriti
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द्यूतं समाह्वयं चैव राजा राष्ट्रान्निवारयेत् ।राजान्तकरणावेतौ द्वौ दोषौ पृथिवीक्षिताम् ।।9/221

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
द्यूत और (1) समाह्व्य नाम द्यूत क्रीड़ा वाले (जुआरियों) को राजा अपने राज्य में न होने दे क्योंकि यह दोनों राज्य को नष्ट भ्रष्ट करते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
राजा जड़ वस्तुओं से बाजी लगाकर खेलने वाल ’जूआ’´को और चेतन प्राणियों को दाव पर लगाकर खेले जाने वाले ’समाह्वय’ नामक ’जूआ’ का अपने देश से समाप्त कर दे क्योंकि ये दोनों बुराइयां राजाओं के राज्य को नष्ट कर देने वाली है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा को चाहिए कि वह द्यूत और समाह्वय, इन दोनों प्रकार के जूओं को राष्ट्र से दूर करे, क्योंकि वे दोनों दोष राजाओं के राज्य का नाश करने वाले हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
द्यूत (जुआ) और समाह्वय को राजा अपने राज से निकाल दे। यह दोनों दोष राजाओं के राज को नाश करने वाले हैं।
 
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