Manu Smriti
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वस्त्रं पत्रं अलङ्कारं कृतान्नं उदकं स्त्रियः ।योगक्षेमं प्रचारं च न विभाज्यं प्रचक्षते ।।9/219
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वस्त्र, सवारी, अलंकार, आभूषण, शीशा के पात्र आदि, कृतान्न (बना हुआ खाद्य, अन्न) पानी का कुवाँ, घर के पुरोहित आदि सम्बन्धी पशुओं के आने जाने का मार्ग इनको विभाजित न करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
यह (9/219) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त है— 1. अन्तर्विरोध- (क) मनु 9/104, 218 मे समस्त पैतृक सम्पत्ति का विभाजन लिखा है । परन्तु इस श्लोक में वस्त्र, वाहन, आभूषणादि को अविभाज्य कहकर उसका विरोध किया है । (ख) इस श्लोक में स्त्रियों को भी अविभाज्य कहकर दासियों की प्रथा को स्वीकार किया है । यह प्रथा मनुसम्मत नही है । मनु ने शूद्र को भी सेवक के रूप में स्वीकार किया है और वह भी स्वेच्छा से । अतः दास-दासी वाली मान्यता मनुसम्मत नही है । इस विषय में 1/91, 9/334, 10/99 श्लोक द्रष्टव्य है ।
 
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