Manu Smriti
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ऋणे धने च सर्वस्मिन्प्रविभक्ते यथाविधि ।पश्चाद्दृश्येत यत्किं चित्तत्सर्वं समतां नयेत् ।।9/218

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ऋण धन के देने के पश्चात् जो कुछ धन शेष रहे उसके समान भाग करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
पिता के सारे ऋण और धन का विधिपूर्वक बंटवारा हो जाने पर यदि बाद मे कुछ ऋण और धन के शेष रहने का पता लगे तो उस सबको भी समानरूप में बांट लें ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
समस्त धन और ऋण परस्पर में यथाविधि बंट जाने पर, यदि पीछे पिता का कुछ धन या ऋण और दिखाई पड़े, तो उसे भी आपस में समान समान बाँट लिया जावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
ऋण और धन सब के बराबर बराबर बांटने के पीछे यदि किसी और ऋण या धन का पता लगे तो उसकी भी बराबर बराबर बांटना चाहिये।
 
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