Manu Smriti
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ऊर्ध्वं विभागाज्जातस्तु पित्र्यं एव हरेद्धनम् ।संसृष्टास्तेन वा ये स्युर्विभजेत स तैः सह ।।9/216

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पिता ने पुत्रों से पृथक होकर फिर पुत्र उत्पन्न किया हो तो वह पुत्र केवल पिता ही का धन पाता है और उनके साथ प्रथम पृथक भाई सम्मिलित होकर रहे हों तो उसके साथ धन विभाजित होने के पश्चात् जो पुत्र उत्पन्न हुआ है वह भी भाग लेवे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
धन का बंटवारा करके (पिता की जीवित अवस्था में ही) पुत्रों के अलग हो जाने पर यदि कोई पुत्र उत्पन्न हो जाये तो वह पिता के धन को ले अथवा को कोई पुत्र पिता के साथ सम्मिलित रूप मे रह रहें हों तो वह उन सबके समान भाग प्राप्त करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि पाित अपने जीवनकाल में पुत्रों में धन बाँट दे और उसके बाद पिता के कोई अन्य पुत्र उत्पन्न हो जावे, तो पिता के मरने पर वह पिता का ही धन पावेगा और जो पुत्र विभक्त हो जाने पर भी पिता ही के साथ मिलकर रहे हों, तो वह पीछे पैदा हुआ पुत्र पिता के मरने के बाद उन मिले हुए भाईयों के साथ मिलकर विभाग करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि बांट करने के पश्चात् पिता के कोई दूसरा पुत्र उत्पन्न हो तो वह उसी धन को ले जो इस समय पिता के पास है। या जो उसी के साथ रहते हों उनके साथ बराबर बराबर बांट ले।
 
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