Manu Smriti
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भ्रातॄणां अविभक्तानां यद्युत्थानं भवेत्सह ।न पुत्रभागं विषमं पिता दद्यात्कथं चन ।।9/215

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सब भ्राता मिलकर धन संचित करें तो पिता को उचित है कि अंश विभाजित करते समय सबको समान भाग देवें न्यूनाधिक न दें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सम्मिलत रूप में रहते हुए सब भाइयों ने यदि साथ मिलकर धन इकट्ठा किया हो तो पिता किसी भी प्रकार पुत्रों के भाग को विषम अर्थात् किसी को अधिक किसी को कम रूप में न बांटे , सभी को बराबर दे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि पिता के जीते हुए अविभक्त सभी भाईयों का द्रव्योपार्जन में सहयोग हो, तो विभागकाल में पिता, पुत्रों का विषम भाग कभी न करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
साझे में रहते हुये भाई यदि साथ-साथ धन को कमावें तो पिता को चाहिये कि बाँट करते समय किसी भाई को कम या अधिक न दें।
 
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