Manu Smriti
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सर्व एव विकर्मस्था नार्हन्ति भ्रातरो धनम् ।न चादत्त्वा कनिष्ठेभ्यो ज्येष्ठः कुर्वीत यौतकम् ।।9/214

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि सब भ्राता निरर्थक कार्यों में संलग्न रहें तो पैतृक धन के उत्तराधिकारी नहीं। बड़ा भाई छोटे भाई का भाग दिये बिना केवल अपने अधिकार में न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जुआ खेलना, चोरी करना, डाका डालना बुरे कामों में संलग्न रहने वाले सभी भाई धनभाग को प्राप्त करने के अधिकारी नही होते और छोटे भाइयोंको बिना दिये=बिना बांटे बड़ा भाई अपने पितृधन में से अलग से धन न ले ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि सब भाई द्यूत-मद्यपान-वेश्यागमनादि विरुद्धाचरण करने वाले हों, तो उनमें से किसी को भी दायभाग न मिलना चाहिए। और एवं, नाही बड़ा भाई छोटे भाइयों को दायभाग बिना दिए पैत्रिक धन का उपभोग कर सकता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो भाई विकर्मस्थ हैं (अर्थात् जो कुल की मर्यादा पर नहीं चलते) जो जुआरी आदि हैं और जिनके द्वारा कुल की सम्पत्ति के नष्ट होने का भय है, वह धन के अधिकारी नहीं है। बड़े भाई को चाहिये कि वह छोटे भाइयों से बचाकर अपने लिये कोई धन गुप्त रूप से न रक्खें।
 
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