Manu Smriti
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यो ज्येष्ठो विनिकुर्वीत लोभाद्भ्रातॄन्यवीयसः ।सोऽज्येष्ठः स्यादभागश्च नियन्तव्यश्च राजभिः ।।9/213

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो बड़ा भ्राता लोभवश छोटे भ्राता को उसका भाग नहीं देता वह ज्येष्ठ भ्राता नहीं कहला सकता और राजा का धर्म है कि उसे दण्ड देवे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो बड़ा भाई छोटे भाइयों को लाभ में आकर ठगे, पूरा भाग न दे तो उसे बड़े के रूप में नहीं मानना चाहिए और उसे बड़े भाई के नाम का उद्धार भाग भी नही देना चाहिए और वह राजा के द्वारा दण्डनीय होता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो बड़ा भाई लोभ से छोटे भाईयों के साथ दुर्व्यवहार करता हुआ उन्हें ठगता है, वह बड़ा भाई नहीं रहता, न उसे बड़े भाई का विशेष भाग मिलता है, और वह राजपुरुषों से दण्डित होना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो बड़ा भाई लोभ के वश अपने छोटे भाइयों को हिस्से से वंचित रक्खे वह ज्येष्ठ न रहे, उसको उसका भाग भी न मिलें। और राजा उसे दण्ड दे।
 
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