Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
भ्राताओं में बड़ा वा छोटा भ्राता सन्यासी आदि हो जाने के कारण अंश विभाग के समय अपना अंश (हिस्सा) ने ले अथवा मृत्युत हो गया हो तो उसका भाग लोप न करना चाहिये वरन् उसका भाग भी पृथक् करना उचित है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिन भाईयों में से बड़ा या छोटा भाई अपने भाग से वंचित रह जाये, मर जाये अथवा अन्य किसी गृहत्याग आदि कारण से भाग न लेवे तो उसका भाग नष्ट नहीं होता अर्थात् उसके पुत्र, पत्नी आदि को प्राप्त होता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जिन भाइयों के बीच में पत्नी व पुत्र के बिना बड़ा या छोटा भाई संन्यासी आदि हो जाने के कारण अपने भाग से हीन हो जावे, अथवा कोई मर जावे, तो उस का दायभाग मारा नहीं जाता। परन्तु उसके भाग को सगे भाई जोकि विभक्त अथवा मिले हुए हों, और सगी बहिनें, ये सव परस्पर में बराबर-बराबर बाँट लें।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
उनमें से यदि कोई बड़ा या छोटा भाई मरने या अन्य किसी कारण से (जैसे पतित या सन्यासी हो जाय) अपना हिस्सा लेने से छूट जाय तो उसका भाग लुप्त न हो।