Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
एक बार धन विभक्त हो गया फिर स्वेच्छापूर्वक एकत्र सम्मिलित होकर रहें और धन विभाजित करें तो बड़े भ्राता का वह भाग देवे सो उसकी ज्येष्ठता के कारण से प्रथम अंश विभाग में दिया जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सब कोई एक बार विभाग का बंटवारा करके (सहजीवन्तः) फिर सम्मिलित होकर यदि फिर अलग होना चाहे तो उस स्थिति में सबको समान भाग प्राप्त होगा तब उसमें ज्येष्ठ भाई का उद्धार भाग नहीं होता ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो भाई एक बार विभक्त होकर फिर इकट्ठे मिल कर जीविका चलावें, और तत्पश्चात् फिर अलग-अलग हों, तब उस अवस्था में समान-समान ही विभाग होगा, वहाँ बड़े का बड़ा भाग नहीं होता।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
साझे रहते हुये भाई यदि पीछे से अलग हों तो उनके भाग बराबर-बराबर होने चाहिये। उसमें ज्येष्ठ भाई का उद्धार का अधिकार नहीं है।