Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पिता के धन को किसी ने हरण कर लिया और पिता ने पुनः प्राप्त न कर पाया हो और पुत्र उस धन को अपने परिश्रम से प्राप्त न कर लेवे तो उसका भाग अपने पुत्रों को न देवें और इच्छा हो तो बेचे क्योंकि वह धन अपने प्रयत्न और परिश्रम से प्राप्त हुआ है पिता का पैतृक धन नहीं है।
टिप्पणी :
209वें श्लोक से स्पष्ट प्रकट होता है कि मनुजी की आज्ञा है कि पैतृक धन में तो सन्तान का स्वत्व है और स्वयं उपार्जित धन में पिता की इच्छा है वह जिसे चाहे दे सकता है उसका कोई स्वत्व नहीं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यदि कोई पिता गहने रखे किसी द्वारा छीने हुए या मारे हुए अत दायरूप में अप्राप्त पैतृक धन को जो किसी उपाय से प्राप्त कर ले तो सम्मिलित रहते हुए भी यदि वह न चाहे तो अपने श्रम से प्राप्त उस धन को सब अपने पुत्रों में अथवा पिता के पुत्रों अर्थात् भाइयों में न बांटे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसी प्रकार यदि कोई पिता पैत्रिक द्रव्य को जोकि उसे प्राप्त नहीं हुआ था, परन्तु पीछे किसी विशेष प्रयत्न से वह उसे पा लेवे, तो उसकी इच्छा के विरुद्ध वह स्वोपार्जित धन भी उसके पुत्रों में नहीं बाँटा जा सकता।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि पिता अपने पहले न पाये हुये पैतृक द्रव्य को फिर अपनी कोशिश से पा जाय तो यह उसका स्वयं कमाया धन है। यदि न चाहे वह अपने पुत्रों को न बांटे। (नोट-वह धन जो पैतृक सम्पत्ति तो है परन्तु किसी कारण से हाथ से निकल गया, अब वह किसी विशेष प्रयत्न से मिला, तो उसे स्वयं कमाये धन के समान समझना चाहिये। और उसमें दूसरों का भाग उसी की इच्छा से हो सकता है।)