Manu Smriti
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अनुपघ्नन्पितृद्रव्यं श्रमेण यदुपार्जितम् ।स्वयं ईहितलब्धं तन्नाकामो दातुं अर्हति ।।9/208

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पैतृक धन व्यय न कर केवल अपने ही परिश्रम से जो धन संचित करे उसका यदि अपनी इच्छा न हो तो अपने भ्राताओं को न देवे अर्थात् इस धन में से भ्राताओं को भाग न देवे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
पितृ-धन को बिल्कुल भी उपयोग में न लाता हुआ यदि कोई पुत्र केवल अपने परिश्रम से धन उपार्जित करे तो अपने परिश्रम से संचित उस धन में से किसी भाई को कुछ न देना चाहे तो न देवे अर्थात् देने के लिये वह बाध्य नही है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इकट्ठे रहते हुए यदि किसी भाई ने पैतृक द्रव्य को न छेड़ते हुए अपने पुरुषार्थ से कोई धन उपार्जित किया हो, तो उसकी इच्छा के विरुद्ध वह स्व-पुरुषार्थोपार्जित धन अन्य भाईयों में नहीं बांटा जा सकता।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
पिता के धन अर्थात् पौत्रिक सम्पत्ति का उपयोग बिना किये अपने श्रम से जो धन उपार्जित करता है वह धन उसी का है। यदि वह नहीं चाहता तो वह धन किसी को न दें।
 
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