Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सब मूर्ख भाईयों ने परिश्रम से धन संचित किया हो तो उनमें समान भाग करना चाहिये। वह धन पैतृक धन नहीं है यह शास्त्र का निश्चय है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
संयुक्त रहते यदि (अविद्यानां तु सर्वेषाम्) बिना पढ़े लिखे सब भाइयों के (ईहातः चेत् धनं भवेत्) प्रयत्नों (खेती, व्यापार आदि) से धन एकत्रित हुआ हो तो उसमें पितृधन को छोड़कर बाकी धन में सबका समान भाग होगा (इति धारणा) ऐसी मान्यता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु य`ि वे सब अविद्वान् हों और उन्होंने मिलकर मजूरी से कुछ धन कमाया हो, तो पैत्रिक धन को पृथक् न मान कर, सब को समान-समान बांट दिया जावे, ऐसी व्यवस्था है। अर्थात्, उस हालत में बड़े भाई को भी पूर्वनिर्दिष्ट प्रकार से अधिक भाग लेने का अधिकार नहीं होगा।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि इन सब (अविद्यानाम्) बेपढ़े भाइयों का अपना कमाया हुआ धन हो, तो इनका बराबर बाँट होना चाहिये, क्योंकि यह पितृ-धन तो है नहीं।