Manu Smriti
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यद्यर्थिता तु दारैः स्यात्क्लीबादीनां कथं चन ।तेषां उत्पन्नतन्तूनां अपत्यं दायं अर्हति ।।9/203

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
क्लीव आदि को विवाह करने की इच्छा हो तो विवाह करके योग्यतानुसार उस स्त्री में पुत्रोत्पन्न कराके उस पुत्र को भाग देवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यदि नपुंसक आदि इन पूर्वोक्तों को भी विवाह करने की इच्छा हो तो इनके उत्पन्न ’क्षेत्रज’´= नियोगज पुत्र आदि (अपत्यम्) सन्तान इनके धन की भागी होती है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु, यदि वे असमर्थ भाई स्त्रियों की इच्छा करें, और नियुक्त स्त्रियों से कदाचित् उनके समर्थ पुत्र उत्पन्न हो जावें, तो वह योग्य पुत्र धन का भागी होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि किसी प्रकार इन नपुन्सक आदि को विवाह की इच्छा हो, तो उनकी सन्तान इस जायदाद की वारिस समझी जाय।
 
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