Manu Smriti
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अनंशौ क्लीबपतितौ जात्यन्धबधिरौ तथा ।उन्मत्तजडमूकाश्च ये च के चिन्निरिन्द्रियाः ।।9/201

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
क्लीव (नपुन्सक), पतित, जन्म अन्धा, बहिरा, व्याधि आदि से उत्पन्न हुआ, उन्मत्त, जड़ मूक (गूँगा) वा किसी अंग वा इन्द्रिय हीन, जो ऐसे पुरुष हैं वह भाग नहीं पाते।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
नपुंसक, पतित जन्म से अन्धे और बहरे पागल, वज्रमूर्ख और गूंगे (च) और (ये केचित् निरिन्द्रियाः) जो कोई किसी इन्द्रिय से पूर्ण विकलांग है (अनंशौ) ये सब धन के हिस्सेदार नही होते
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
नपुंसक, पतित, जन्मान्ध, जन्मबधिर, पागल, जड़वत्, महामूर्ख, गूंगे, और इसी प्रकार जो लूले-लंगड़े आदि निरिन्द्रिय हों, उन्हें पैत्रिक धन का अधिकार नहीं। परन्तु बुद्धिमान् दायाधिकारी को चाहिए कि वह इन सभी नपुंसक आदि असमर्थों को यथाशक्ति भरपेट न्यायोचित भोजनाच्छादन देता रहे। यदि वह ऐसा नहीं करता, तो वह पतित होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
नपुंसक, पतित जन्म-अन्ध, बधिर, उन्मत्त, जड़, मूक और निरिन्द्रिय जायदाद के वारिस नहीं होने चाहिये। परन्तु इन सब को भोजन, वस्त्र आवश्यकतानुसार बुद्धिमान वारिस की ओर से मिलना चाहिये। यदि न दे, तो पतित होवे।
 
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