Manu Smriti
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न निर्हारं स्त्रियः कुर्युः कुटुम्बाद्बहुमध्यगात् ।स्वकादपि च वित्ताद्धि स्वस्य भर्तुरनाज्ञया ।।9/199

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
भाई आदि कुटुम्बियों का जो साधारण धन है उसको स्त्री आदि आभूषण बनवाने को न लेवे और पति की आज्ञा के बिना पति के दिये हुये धन को भी न लेवे। इससे यह सिद्ध हुआ कि यह स्त्रियों के धन नहीं हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(स्त्रियः) स्त्रियाँ बहुत सदस्यों के कुटुम्ब से चुपके से धन ले-लेकर अपने लिए धन संग्रह और व्यय न करें (च) और (स्वकात् वित्तात अपि हि) अपने धन में से भी अपने पति की आज्ञा के बिना व्यय न करें ।
 
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