Manu Smriti
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यत्त्वस्याः स्याद्धनं दत्तं विवाहेष्वासुरादिषु ।अप्रजायां अतीतायां मातापित्रोस्तदिष्यते ।।9/197

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
असुर, पिशाच और राक्षस इन तीन प्रकार के विवाह में जो धन स्त्री को मिला हो तो उस स्त्री के निःसन्तान मृत्यु हो जाने के पश्चात् उसके माता पिता उस धन को पाते हैं पति नहीं पाता।
टिप्पणी :
197वें श्लोक से स्पष्ट प्रगट होता है कि यह तीन प्रकार के विवाह अनुचित हैं क्योंकि इसमें स्त्री को पति का अर्धांग नहीं माना गया है। अन्यथा पति को उपस्थिति में अन्य का स्वत्वन होता।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(यत् तु अस्याः) और जो इसे (आसुरादिषु विवाहेषु दत्तं धनं स्यात्) ’आसुर’ आदि विवाहों मे दिया गया धन हों स्त्री के निःसन्तान मर जाने पर वह धन स्त्री के माता-पिता का हो जाता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ब्राह्म, दैव, आर्ष, गान्धर्व और प्रजापत्य विवाहों में स्त्री के निस्सन्तान मरने पर, स्त्री के धन का अधिकारी उसका पति माना गया है। और, आसुरादि शेष विवाहों में जो धन स्त्री को पितृकुल ने दिया हो, स्त्री के निस्सन्तान मरने पर, वह धन स्त्री के माता-पिता का माना गया है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
परन्तु असुर आदि तीन विवाहों की स्त्री यदि बिना सन्तान के मरे, तो उसका धन उसके माता पिता को मिले।
 
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