Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो धन प्रसन्नतापूर्वक पति ने दिया हो तथा पति की मृत्यु के उपरान्त जो धन उसके कुल से मिला हो इन दोनों प्रकार के धनों के माता पिता की मृत्यु के पश्चात् पुत्र उत्तराधिकारी होते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(यत् अन्वावेयम्) जो अन्वाधेय अर्थात् विवाह के पश्चात् पिता या पति द्वारा दिया गया है, वह धन (च) और (यत् प्रीतेन पत्या दत्तम्) जो प्रीतिपूर्वक पति के द्वारा दिया गया धन है (वृत्तायाः) स्त्री के मरने पर (पत्यौ जीवति) और पति के जीवित रहते भी (तत्धनं प्रजायाः भवेत्) वह धन सन्तानों का ही होता है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(5) अन्वाधेयम्-जो पति के कुल में विवाह के पश्चात् भेंट-रूप मिले, (6) पत्य प्रीतेन दत्तं-जो पति से प्रीतिपूर्वक दिया हुआ हो। यह स्त्री धन स्त्री के मरने पर उसकी संतान का होता है, चाहे पति जीता भी क्यों न हो।