Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पाणिग्रहण के समय अग्नि के समक्ष पिता आदि ने जो धन आदि दिया हो, और विदा के समय जो धन आदि दिया जाता है, वह प्रसन्नतापूर्वक पूर्वक जो पति देता, भ्राता ने जो दिया हो पिता ने जो दिया हो माता ने जो दिया वह छः प्रकार के धन ऋषियों ने स्त्री धन वर्णन किये हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(स्त्रीधनं षड्विधं स्मृतम्) स्त्रीधन छह प्रकार का माना गया है— 1. (अघ्यग्नि) विवाह संस्कार के समय दिया गया धन, 2. (अध्यावाहनिकम्) पति के घर लायी जाती हुई कन्या को प्राप्त हुआ पिता के घर का धन 3. (प्रीतिकर्मणि च दत्तम्) प्रसन्नता के किसी अवसर पर पति आदि के द्वारा दिया गया धन, (भ्रातृ-पितृ-मातृ-प्राप्तम) 4. भाई से प्राप्त धन. 5. पिता से प्राप्त धन , 6. माता से प्राप्त धन ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
’स्त्री-धन‘ छः प्रकार हैंः-
(1) अध्यग्नि-अर्थात् विवाह-संस्कार के समय दिया जाय, (2) अध्यावाहनिकम्-अर्थात् निमन्त्रण के समय दिया जाय, (3) प्रीति-कर्मणि दत्तम्-किसी त्यौहार या शुभ अवसर पर दिया जाय, (4) भाई, मां या पिता से मिले।