Manu Smriti
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यास्तासां स्युर्दुहितरस्तासां अपि यथार्हतः ।मातामह्या धनात्किं चित्प्रदेयं प्रीतिपूर्वकम् ।।9/193

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
माता के धन को पुत्री पावे और पुत्री के पुत्र को भी कुछ धन नीति के कारण देना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(तासां याः दुहितरः स्युः) उन सगी बहनों की जो पुत्रियां हों (तासां+ अपि यथार्हतः) उनको भी यथायोग्य प्रेम पूर्वक नानी के धन में से कुछ देना चाहिये ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु, माता के मरने पर उसके धन को सब सगे भाई और बहिन परस्पर में बराबर-बराबर बांटें। और, जो धन बहिनों की कन्यायें हों, उन्हें भी यथायोग्य प्रीतिपूर्वक नानी के धन में से कुछ अंश देना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि उन लड़कियों की लड़कियाँ हों, तो उनको भी प्रीतिपूर्वक नानी की जायदाद से कुछ न कुछ मिलना चाहिये।
 
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