Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन महाभूतों में पूर्व-पूर्व के गुणों को अगला-अगला ग्रहण करता है। जिसकी जैसी योग्यता है, उसमें वैसा गुण होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(एषाम्) इन (२० वें में चर्चित) पंच्चमहाभूतों से (आद्य - आद्यस्य गुणं तु) पूर्व - पूर्व के भूतों के गुण को (परः परः) परला - परला अर्थात् उत्तरोत्तर बाद में आने वाला भूत प्राप्त करता है (च) और (यः यः) जो - जो भूत (यावतिथः) जिस संख्या पर स्थित है (सः सः) वह - वह (तावद्गुणः) उतने ही अधिक गुणों से युक्त (स्मृतः) माना गया है ।