Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
स्त्री ससुर आदि की आज्ञानुसार देवर वा सपिण्ड अर्थात् सम्बन्धी से पुत्र उत्पन्न करे। कामाशक्ति से उत्पन्न पुत्र पैतृक धन का उत्तराधिकारी नहीं। यह ऋषि लोग कहते हैं।
टिप्पणी :
147वें श्लोक से जो काम में उत्पन्न होने वाले पुत्र को पैत्रिक धन का न मिलना लिखा है वहाँ काम से उत्पन्न होने से यह तात्पर्य है कि विषय भोग की इच्छा से भोग किया जावे और संतानोत्पन्न करने का विचार ध्यान में न लाकर केवल इन्द्रिय तृप्ति के प्राप्ति करने की रीतियों कार्यरूप में परिणत की जायें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(या अनियक्ता) जो स्त्री नियोगविधि के बिना (अन्यत) वा देवरात् अपि) अन्य सजातीय. पुरुष से या देवर से भी (पुत्रम अवाप्नुयात्) पुत्र प्राप्त करे (तम्) उस पुत्र को (कामजं वृथोत्पन्नम् अरिक्थीयम्) कामज= कामवासना के वशीभूत होकर उत्पन्न किया गया, वृथोत्पन्न = व्यर्थ में उत्पन्न और पितृधन का अनधिकारी (प्रचक्षते) कहते हैं ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो स्त्री बिना नियोग के देवर या अन्य से पुत्र उत्पन्न करे वह सन्तान नाजायज समझी जावे। और उसको जायदाद का अधिकार नहीं है।