Manu Smriti
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धनं यो बिभृयाद्भ्रातुर्मृतस्य स्त्रियं एव च ।सोऽपत्यं भ्रातुरुत्पाद्य दद्यात्तस्यैव तद्धनम् ।।9/146

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मृत भाई की स्त्री से नियोग करके पुत्र उत्पन्न करें और भ्राता का सारा धन उस पुत्र को देवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(मृतस्य भ्रातुः) मरे हुये भाई के (धनं च स्त्रियम् एव यः बिभृयात्) धन और स्त्री की जो भाई रक्षा करे (सः + अपत्यम्+ उतत्पाद्य) वह भाई की स्त्री से सन्तान उत्पन्न करके (भ्रातुः तत् धनं दद्यात्) भाई का वह प्राप्त सब धन उस पुत्र को ही दे देवे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
पुत्ररहित भाई के मर जाने पर जो दूसरा भाई उसके धन तथा उसकी स्त्री की रक्षा करे, वह नियोग द्वारा भौजाई में भाई की सन्तान उत्पन्न करके, भाई का धन उस पुत्र को देदे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि कोई अपने मरे हुए भाई के धन को ले और उसकी स्त्री में नियोग से सन्तान भी उत्पन्न करे तो वह उस भाई की सन्तान है। इसके उत्पन्न होने पर वह धन उसी सन्तान को मिलना चाहिये।
 
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