Manu Smriti
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पुत्रेण लोकाञ् जयति पौत्रेणानन्त्यं अश्नुते ।अथ पुत्रस्य पौत्रेण ब्रध्नस्याप्नोति विष्टपम् ।।9/137

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पुत्र के द्वारा इंद्रलोक आदि को जीतता है और पोते के द्वारा अनन्त फल को पाता है और प्रपौत्र (परपोता) के द्वारा सूर्यलोक को पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(यः) जो (सुतः) पुत्र (पितरम्) माता-पिता को (पम् नाम्नः नरकात्) पुम्= वृद्धावस्था आदि से उत्पन्न होने वाले दुःखों से (त्रायते) रक्षा करता है (तस्मात्) इस कारण से (स्वयंभुवा स्वयमेव पुत्रः इति प्रोक्तः) स्वयंभू ईश्वर ने वेदों में बेटे को ’पुत्र’ संज्ञा से अभिहित किया है (द्रष्टव्य है—’सर्वेषां तु स नामानि.............वेदशब्देभ्य एवादौ.............निर्ममे’ ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
पुत्र से लोक में विजय होती है। पौत्र से अनन्त सुख मिलता है। और पौत्र के पुत्र से तो मानो आदित्य लोक मिल जाता है।
 
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