Manu Smriti
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अपुत्रायां मृतायां तु पुत्रिकायां कथं चन ।धनं तत्पुत्रिकाभर्ता हरेतैवाविचारयन् ।।9/135
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि पुत्रिका से पुत्र उत्पन्न न हुआ और पुत्रिका मर जावे तो उसके मरने के पश्चात् उसका पति उसके धन को लेवे इसमें कुछ विचार न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये तीनों (9/135-137) श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त है— 1. विषयविरोध- प्रस्तुत विषय दाय-भाग के वर्णन का है । किन्तु 136 वें श्लोक में पिण्ड-दान की बात विषय़-बाह्य होने से असंगत है । 2. अन्तर्विरोध- (क) 135 वें श्लोककी मान्यता मनु द्वारा कथित पुत्रिका धर्म से विरुद्ध है । पुत्रिका-धर्म का अभिप्राय यह होता है कि उससे जो पुत्र होगा वह 9/127 के अनुसार सुखदायक होगा, अतः उसे नाना की सम्पत्ति का अधिकार मिलता है । किन्तु पुत्रिका के पुत्रहीन ही मरने पर वह उद्देश्य समाप्त हो जाता है । अतः पुत्रिका के पति का धन पर अधिकार कहना असंगत एव मनु से विरुद्ध है । क्योंकि ऐसे धन का अधिकार 211-212 श्लोकों के अनुसार दूसरे भाई-बहनो का होता है अथवा (141 के अनुसार) दत्तक पुत्र का । (ख) और 136 वें श्लोक का विधान 127 वे से विरुद्ध है । यदि पुत्रिका के करने अथवा न करने पर भी पुत्रहीन नाना के धन पर दौहित्र का अधिकार होता है, तो पुत्रिका-धर्म के विधान की कोई आवश्यकता नही रहती । (ग) और 137 वें श्लोक में पौत्र से मोक्ष-प्राप्ति तथा पुत्र-पौत्र से सूर्यलोक की प्राप्ति मनुसम्मत नहीं है । पौत्र से मोक्ष-प्राप्ति होवे, तो सभीको मोक्ष प्राप्त हो जावे और मोक्ष के दूसरे साधन(मनु प्रोक्त) सब निरर्थक हो जायें। और दूसरे के कर्म से दूसरे को फल मिलने से अकृताभ्यागम दोष भी होगा । मनु तो कर्मो के कर्ता को ही कर्मफल का (4/240) भोक्ता मानते है । और सूर्यलोकादि स्थान-विषय को मनु स्वर्ग नहीं मानते । वे सुखविशेष की अनुभूति की दशा को मोक्ष मानते है । एतदर्थ 2/249, 4/260, 6/81, 85, 88 आदि मनुप्रोक्त श्लोक द्रष्टव्य है । इन अन्तर्विरोधों के कारण ये श्लोक प्रक्षिप्त है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु, यदि कदाचित् पुत्रिका भी बिना पत्र के मर जावे, तो उस धन को उसका दामाद बिना किसी विचार के बेखटके ग्रहण करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि पुत्रिका मर जाय और उसके कोई सन्तान न हो तो इस धन का निःशंक अधिकारी पुत्रिका का पति है।
 
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