Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन्हीं तीन वेदों से ब्रह्माजी ने गायत्री मन्त्र के तीन पद निकाले हैं।
टिप्पणी :
ऋग्वेद से अर्थ सतवती अर्थात् पदार्थ प्रशंसा वर्णन से है, और यजुर्वेद में यज्ञ अर्थात् पदार्थों के संयुक्त करने की विधि और सामवेद में यज्ञों की उच्चता को बताने वाली गायत्री है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. परमेष्ठी प्रजापतिः सबसे महान् परमात्मा ने तत् इति अस्याः साविव्याः ऋचः ‘तत्’ इस पद से प्रारम्भ होने वाली सावित्री ऋचा (गायत्री मन्त्र) का पादं पादम् एक - एक पाद प्रथम पाद है - ‘तत्सवितुर्वरेण्यम्, द्वितीय पाद - ‘भर्गो देवस्य धीमहि’, तृतीय पाद - ‘धियो यो नः प्रचोदयात्’ त्रिभ्यः एव तु वेदेभ्यः तीनों वेदों से अदूदुहत् दुहकर साररूप में बनाया है ।’