Manu Smriti
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पौत्रदौहित्रयोर्लोके न विशेषोऽस्ति धर्मतः ।तयोर्हि मातापितरौ संभूतौ तस्य देहतः ।।9/133
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
संसार में पौत्र और दौहित्र अर्थात् पोता और नाती में कोई विशेष अन्तर नहीं है। दोनों एक समान हैं क्योंकि एक के पिता की और एक के माता की उत्पत्ति एक ही से है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
और 133 वां श्लोक 132 से सम्बद्ध होने से प्रक्षिप्त है । 2. शैलीविरोध- 133 वें श्लोक में पौत्र-दौहित्र का अभेद कथन अयुक्तियुक्त है। अन्यथा 127 वें श्लोक में पुत्रिका करने की क्या आवश्यकता है ? दौहित्र का धन का अधिकार पौत्र की भांति कदापि नही हो सकता । केवल आपत्काल (सन्तान के अभाव में) में ही पुत्रिका धर्मानुसार दौहित्र का अधिकार मनु ने माना है ।
 
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