Manu Smriti
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यथैवात्मा तथा पुत्रः पुत्रेण दुहिता समा ।तस्यां आत्मनि तिष्ठन्त्यां कथं अन्यो धनं हरेत् ।।9/130

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अपनी आत्मा के समान पुत्र हैं और पुत्र समान कन्या है अतएव आत्मा समान कन्या उपस्थित होने पर किसी प्रकार अन्य पुरुष धन को लेवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(यथा + एव आत्मा तथा पुत्रः) जैसी अपनी आत्मा है वैसा ही पुत्र होता है, और (पुत्रेण दुहिता समा) पुत्र जैसी ही पुत्री होती है (तस्याम्+आत्मनि तिष्ठन्त्याम्) उस आत्मारूप पुत्री के रहते हुये (अन्यः धनं कथं हरेत्) कोई दूसरा धन को कैसे ले सकता है? अर्थात् पुत्र के अभाव में पुत्री ही धन की अधिकारिणी होती है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जैसा स्वयं है वैसा पुत्र। जैसा पुत्र वैसी पुत्री। जब पुत्री है तो धन दूसरे के पास क्यों जावे।
 
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