Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अपनी आत्मा के समान पुत्र हैं और पुत्र समान कन्या है अतएव आत्मा समान कन्या उपस्थित होने पर किसी प्रकार अन्य पुरुष धन को लेवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(यथा + एव आत्मा तथा पुत्रः) जैसी अपनी आत्मा है वैसा ही पुत्र होता है, और (पुत्रेण दुहिता समा) पुत्र जैसी ही पुत्री होती है (तस्याम्+आत्मनि तिष्ठन्त्याम्) उस आत्मारूप पुत्री के रहते हुये (अन्यः धनं कथं हरेत्) कोई दूसरा धन को कैसे ले सकता है? अर्थात् पुत्र के अभाव में पुत्री ही धन की अधिकारिणी होती है ।