Manu Smriti
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अपुत्रोऽनेन विधिना सुतां कुर्वीत पुत्रिकाम् ।यदपत्यं भवेदस्यां तन्मम स्यात्स्वधाकरम् ।।9/127

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कन्यादान के समय जामाता (दामाद) से ऐसा परामर्श करे कि हमारे घर में पुत्र नहीं है उस पुत्रिका से जो प्रथम जन्मेगा वह हमारा श्राद्ध कर्म करने वाला हो। इस प्रकार पुत्री के पुत्र को स्थानापन्न समझें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(अपुत्रः) पुत्रहीन पिता (अस्यां यत् + अपत्यं भवेत् तत् मम स्वधाकरं स्यात्) ’इस कन्या से जो पुत्र उत्पन्न होगा वह मुझे सुख देने वाला होगा’ (अनेन विधिना सुतां पुत्रिकां कुर्वीत) ऐसा दामाद से कहकर कन्या को ’पुत्रिका’ करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसी प्रकार यदि कोई पुत्ररहित भाई कन्या का विवाह करते समय उसे अपनी पुत्रिका बनाले कि इससे जो पुत्र होगा, वह मेरा पुत्र होगा, तो उस अवस्था में वह पुत्रिका पूर्ववत् दायभाग की अधिकारिणी होगी।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जिसके पुत्र न हो वह अपनी पुत्री को इस प्रकार ’पुत्रिका‘ बनाले कि इसके जो पुत्र होगा वह मेरे वंश का चलाने वाला हो।
टिप्पणी :
नोट-पुत्रिका उस पुत्री को कहते हैं जिसकी सन्तान को पिता अपना उत्तराधिकारी बनाता है। यह शर्त विवाह के समय हो जाती है।
 
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