Manu Smriti
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स्वेभ्योऽंशेभ्यस्तु कन्याभ्यः प्रदद्युर्भ्रातरः पृथक् ।स्वात्स्वादंशाच्चतुर्भागं पतिताः स्युरदित्सवः ।।9/118

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सब भाई पृथक पृथक अपने भाग का चतुर्थांश भगिनी को देवें, न देवें तो पतित होते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(भ्रातरः) सब भाई (कन्याभ्यः) अविवाहित बहनो के लिए पृथक् (चतुर्भागम्) पृथक्-पृथक् चतुर्थांश भाग (स्वेभ्यः प्रदद्युः) अपने भागों में से देवे (स्वात् स्वात् + अंशात् अदित्सवः) अपने-अपने भाग से चतुर्थांश भाग न देने वाले भाई (पतिताः स्युः) पतित= ’दोषी और निन्दनीय’ माने जायेंगे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु, वे भाई पृथक्-पृथक् रूप में अपने अपने भागों में से अविवाहित बहिनों को धन दें। वे अपने-अपने भागों में से चौथा चौथा भाग बहिनों को देवें। यदि वे चौथा भाग नहीं देते, तो वे पतित होते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
अपने-अपने भाग में से भाई कन्याओं को अलग-अलग दें। अपने-अपने भाग का चैथाई। न दें तो तो पतित हों।
 
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