Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
बड़ा भ्राता दो भाग लेवे, मंझला डेढ़ भाग लेवे, सबसे छोटा एक भाग लेवे, यह धर्म की व्यवस्था है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(ज्येष्ठः एक अधिकं हरेत्) बडा भाई दो भाग धन ग्रहण करे (तत्+अनुजः पुत्रः अध्यर्धम्) उससे छोटा भाई डेढ़ भाग ले (यवीयांस अंशम् + अंशम्) छोटे भाई का एक-एक भाग सम्पत्ति का ग्रहण करे (इति धर्मः व्यवस्थितः) यही धर्म की व्यवस्था है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
सब से बड़ा पुत्र दो भाग, उससे छोटा डेढ़ भाग, और उससे छोटे सब पुत्र प्रत्येक एक एक भाग ग्रहण करे। इस प्रकार दायधर्म की व्यवस्था की गयी है।