Manu Smriti
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ज्येष्ठस्य विंश उद्धारः सर्वद्रव्याच्च यद्वरम् ।ततोऽर्धं मध्यमस्य स्यात्तुरीयं तु यवीयसः ।।9/112

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सारी सम्पत्ति में से उत्तम द्रव्य और बीसवाँ भाग बड़े को, इसका आधा अर्थात् चालीसवाँ भाग मंझले को और इसका आधा भाग छोटे को, शेष को समान भागों में बाँट देना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(ज्येष्ठस्य विंशः उद्धारः) पिता के धन में से बड़े भाई का बीसवां भाग ’उद्धार’ (=अतिरिक्त भागविशेष) होता है (च) और (सर्वद्रव्यात् यत् वरम्) सब पदार्थों में से जो सबसे श्रेष्ठ पदार्थ हो वह भी, (ततः + अर्धम्) बड़े के ’उद्धार’ से आधा उद्धार (मध्यमस्य) मंझले भाई का अर्थात् चालीसवां भाग, (तुरीयं तु यवीयसः स्यात्) चौथाई भाग अर्थात् अस्सीवां भाग सबसे छोटे भाई का ’उद्धार’ होना चाहिए ।
टिप्पणी :
अनुशीलन- (1) ’उद्धार’ पैतृक सम्पत्ति में से पृथक् किये गये उस भाग को कहते है जिसका लाभ बड़े भाई को मिलता है । (2) समझने के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत है— मान लिया कि पैतृक सम्पत्ति 960 रूपये है । उसमें बड़े भाई का बीसवां भाग (960/20=48) 48 रु॰ ’उद्धार’ निकलेगा, मंझले भाई का चालीसवां भाग (960/40=24) 24 रु॰ होगा, छोटे भाई का अस्सी वां भाग (960/80=12) रु॰ ’उद्धार’ होगा । ’उद्धार’ का ’धन’ बंटने के बाद शेष धन को सभी भाई बराबर बांट लेंगे , यथा—48+24+12=84, 960-84=876; 876/3=292, इस प्रकार 292 — 292 रु॰ प्रत्येक के हिस्से में आये । इस विधि से बड़े भाई को 292+48= 340 रु ॰, उसमें से मंझले भाई को 292+24=316 रू॰ छोटे भाई को 292+12=304 रू॰ प्राप्त हुए ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
सम्पूर्ण धन में से बीसवां भाग, जोकि उत्तम हो, वह बड़े भाई का हिस्सा है। इसी प्रकार चालीसवां हिस्सा मझोले भाई को तथा अस्सीवां हिस्सा छोटे भाई का है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
उद्धार-वह विशेष धन है जो बाँटने के अतिरिक्त निकाला जाता है। उसके नियम यह हैं:- बड़े लड़के को बीसवाँ भाग और सब चीजों में जो सब से अच्छी हो वह। बीच के लड़के को आधा अर्थात् चालीसवाँ भाग। छोटे को उससे भी आधा अर्थात् अस्सीवाँ भाग।
 
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