Manu Smriti
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यो ज्येष्ठो ज्येष्ठवृत्तिः स्यान्मातेव स पितेव सः ।अज्येष्ठवृत्तिर्यस्तु स्यात्स संपूज्यस्तु बन्धुवत् ।।9/110

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो ज्येष्ठता पाता है वह माता पिता के तुल्य है और जो ज्येष्ठता नहीं पाता वह भाई की नाई, आदरणीय है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(यः ज्येष्ठः) जो बड़ा भाई (ज्येष्ठवृत्तिः) बड़ों अर्थात् पिता आदि के समान बर्ताव करने वाला हो तो (सः पिता + इव, सः माता +इव संपूज्यः) वह पिता और माता के समान माननीय है (यः तु) और जो (अज्येष्ठवृत्ति स्यात्) बड़ो अर्थात् पिता आदि के समान बर्ताव करने वाला न हो तो (सः तु बन्धुवत्) वह केवल भाई या मित्र की तरह ही मानने योग्य होता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो बड़ा भाई छोटे भाईयों के साथ बड़ों जैसा बर्ताव करता है, वह माता-पिता की तरह आदरणीय होता है। परन्तु जो ऐसा बड़प्पन का बर्ताव नहीं करता, वह अन्य बन्धुओं के समान सम्मान पाने योग्य होता है, माता-पिता के समान हनीं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो बड़ा भाई छोटों का पालन करे वह माता पिता के समान है। जो पालन न करे, उसकी भी भाई के समान तो पूजा करनी ही चाहिये।
 
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