Manu Smriti
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ज्येष्ठः कुलं वर्धयति विनाशयति वा पुनः ।ज्येष्ठः पूज्यतमो लोके ज्येष्ठः सद्भिरगर्हितः ।।9/109
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
बड़ा पुत्र ही कुल वृद्धि करता है और नाश भी करता है, संसार में बड़े आदर के योग्य हैं, साधु लोगों ने उसकी बुराई नहीं की है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
यह (9/109) वां श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त है— 1. शैली-विरोध- मनु के प्रवचन में समभाव, न्याययुक्त व्यवहार, और युक्तियुक्त बातों का कथन होता है । संयुक्त परिवार में बड़े पुत्र के कर्त्तव्य अधिक होते है । यदि उसमें बडप्पन के गुण न हो तो उसे मनु ने (110 में) दूसरे भाइयों की भांति ही माना है । परन्तु इस श्लोक में निरर्थक पक्षपातपूर्ण ज्येष्ठ-पुत्र की महिमा का वर्णन किया है । और दूसरे पुत्रों की गर्हित मानकर बड़े पुत्र का सम्मान दिखाया है । परन्तु मनु की मान्यता में बड़े छोटे के कारण सम्मान नही होता, प्रत्युत गुणों के कारण होता है । और लोक में भी देखा जाता है कि,अनेक परिवारों में बड़ो की अपेक्षा छोटे अधिक गुणवान् होते है । क्या उस दशा में छोटों का सम्मान न करके बड़े पुत्र का ही सम्मान करना चाहिये ? अतः ये महिमात्मक श्लोक असंगत एवं निरर्थक है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
बड़ा भाई कुल को बढ़ाता है। बड़ा कुल को नष्ट करता है। बड़ा लोगों में सब से अधिक माननीय होता है। ज्येष्ठ को लोग निन्दनीय नहीं समझते।
 
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