Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सारे पैतृक धन को बड़ा पुत्र ही लेवे और छोटा और मंझला भाई सब ज्येष्ठ भ्राता के आधीन रहें जिस प्रकार पिता के आधीन रहते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(अथवा सम्मिलतरूप मे रहना हो तो) (पित्र्यं धनम् अशेषतः ज्येष्ठ एव तु गृह्णीयात्) पिता के सारे धन को बड़ा पुत्र ही ग्रहण करले (शेषाः) और बाकी सब भाई (यथैव पितरम्) जैसे पिता के साथ रहते थे (तथा तम् उपजीवेयुः) उसी प्रकार बड़े भाई के साथ रहकर जीवन चलावे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
अथवा, सम्पूर्ण पैतृक धन को बड़ा भाई ग्रहण करे और शेष सब भाई उस बड़े भाई को पितृस्थानीय मानते हुए उसके आधीन रह कर, उसी से भोजनाच्छादनादि ग्रहण करें।