Manu Smriti
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ऊर्ध्वं पितुश्च मातुश्च समेत्य भ्रातरः समम् ।भजेरन्पैतृकं रिक्थं अनीशास्ते हि जीवतोः ।।9/104

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
माता पिता की मृत्यु के उपरान्त सब मिलकर पैतृक सम्पत्ति के समान भाग करें। माता पिता की जीवितावस्था में सब लड़के आसक्त हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(पितुः च मातुः ऊर्ध्वम्) पिता और माता के मरने के पश्चात् (भ्रातरः समेत्य) सब भाई एकत्रित होकर (पैतृकं रिक्थं समं भजेरन्) पैतृक सम्पत्ति को बराबर-बराबर बांट ले (जीवतोः ते हि अनीशाः) माता-पिता के जीवित रहते हुए वे उस धन के अधिकारी नहीं हो सकते है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
माता-पिता के मरने के बाद सब भाई इकट्ठे होकर पैतृक धन को बराबर-बराबर बांट लें। उनके जीते हुए उन्हें बांटने का कोई हक नहीं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
पिता माता के मरने पर भाई लोग पैतृक जायदाद को बराबर बराबर बाँट लें। जीवन में उनको कोई अधिकार नहीं हैं। (तात्पर्य यह है कि पिता के मरने पर पिता की जायदाद और माता के मरने पर माता की जायदाद बाँटी जाय)।
 
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