Manu Smriti
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एष स्त्रीपुंसयोरुक्तो धर्मो वो रतिसंहितः ।आपद्यपत्यप्राप्तिश्च दायधर्मं निबोधत ।।9/103

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मनुजी ने स्त्री पुरुषों का धर्म पारस्परिक प्रेम विधियों सहित वर्णन करके आपत्तिकाल में नियोग द्वारा संतान उत्पन्न करने की विधियों को जतला कर अंश विभाग को भी इस रीति पर वर्णन किया है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(एषः) यह (स्त्रीपुंसयोः) स्त्री-पुरुष के (रतिसंहितः धर्मः) रति = स्नेह या संयोग सहित (वियोगकाल के भो) धर्म (च) और (आपदि + अपत्यप्राप्ति) आपत्काल में नियोगविधि से सन्तानप्राप्ति की बात (वः उक्तः तुमसे कही ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यह पति-पत्नी का आपस में प्रीतियुक्त धर्म, और आपत्काल में नियोग द्वारा सन्तान की प्राप्ति बतलायी गयी। अब दायभाग के विषय में सुनो।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इतना स्त्री पुरुष का परस्पर प्रीतियुक्त धर्म तथा आपतकाल में संतानोत्पत्ति का धर्म कहा। अब दायभाग का नियम सुनो।
 
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