Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
कृतक्रियौ स्त्रीपुंसौ) विवाहित स्त्री-पुरुष (नित्यं तथा यतेयाताम्) सदा ऐसा यत्न करें कि (यथा) जिस किसी भी प्रकार से (तौ) वे (इतरेतरम्) एक दूसरे से (वियुक्तौ न + अभिचरेताम्) अलग न होवें = सम्बन्धविच्छेद न हो पाये ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
विवाह संस्कार के अनन्तर स्त्री पुरुष को सदैव ऐसा यत्न करते रहना चाहिए कि जिससे वे वियुक्त होकर कभी परस्पर में विरुद्धाचरण न करें।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(कृतक्रियौ स्त्री पुंसौ) सफल स्त्री पुरुषों को (तथा नित्यम् यतेताम्) ऐसा नित्य यत्न करना चाहिये (यथा) कि वे (तौ) वे दोनों (इतरेतम् वियुक्तौः न अभिचरेताम्) एक दूसरे से अलग न हों।